*****दोहे*****
(१)
धरम करम के सार को, रहे कृष्ण जी सींच ।
राजनीतिक के व्याल को, रक्खा मुट्ठी भींच ।।
(२)
धडक-धडक करता जिया, रोते नित ये नैन ।
जातपाँत के रोग ने, छीना सबका चैन ।।
(३)
मेघों ने प्रलाप किया, झर-झर बूँदें नीर ।
भू ने उनको थामकर, हर ली सबकी पीर ।।
*******सुरेशपाल वर्मा जसाला