दोहा मुक्तक
संकेतों के हो गए, जब पूरे दस्तूर ।
लाज लजीली हो गई, बांहों में मजबूर ।
साँसों की सरगोशियाँ, तन्हाई का शोर –
दौर समर्पण का चला, मद में तन थे चूर ।
सुशील सरना / 19-11-24
संकेतों के हो गए, जब पूरे दस्तूर ।
लाज लजीली हो गई, बांहों में मजबूर ।
साँसों की सरगोशियाँ, तन्हाई का शोर –
दौर समर्पण का चला, मद में तन थे चूर ।
सुशील सरना / 19-11-24