“दोहा मुक्तक”
“दोहा मुक्तक”
भर लो चाह बटोर कर, रख अपने भंडार।
खड़ी फसल यह प्रेम की, हरियाली परिवार।
बिना खाद बिन पान के, निधि अवतरे सकून-
मन चित मधुरी भाव भरि, ममता सहज दुलार।।-1
प्रेम खजाना है मनुज, उभराता है कोष।
अहंकार करते दनुज, निधि होती निर्दोष।
कभी गिला करती नहीं, रखती सबका मान-
पाए जो बौरात वह, संचय भारी दोष।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी