“दोहा मुक्तक”
“दोहा मुक्तक”
सच्चाई दिखती नहीं, डेरा तेरा भूत।
राम रहीम के नाम पर, यह कैसी करतूत।
ढोंगी की विसात यही, खुली आँख से देख-
तार तार तेरा हुआ, रे पाखंडी सूत।।-1
सच्चा सौदा नाम का, तक मंशा फलिभूत।
धर्म तुला की राक्षशी, फलती जस सहतूत।
गाल फुलाकर नाचते, मानो हो नटराज-
गुनो जेल में कैद हो, शिष्य तके नहिं पूट
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी