दोहा मुक्तक द्वय
1.
जाड़े का आतंक है, सन सोलह का अंत.
गरीब का जीवन कठिन,गम है घोर अनंत.
ऐसे में मौसम बना,जब दुःख का पर्याय,
स्वाभाविक ही है बहुत, सिहरन और गलंत.
000
2.
मूल्याधारित है कहाँ, अब शिक्षा और ज्ञान.
क्षरित हो रहा है सभी, यूँ आदर -सम्मान.
हैं चौड़े घर – तंग दिल, हालत बड़ी खराब.
आसमान तक चढ़ गया,खुराफात-अभिमान.
000
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज
अधिवक्ता/साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित