दोहा पंचक. . . . .
दोहा पंचक. . . . .
आती- जाती साँस का, क्या करना विश्वास ।
पल भर में यह छीनती, जीवन का मधुमास ।।
देख चिता शमशान में, कहने लगा मलंग ।
जीवन के हर चक्र का, यह है सच्चा रंग ।।
सर्व विदित संसार में, कुछ भी गया न साथ ।
फिर भी बन्दा अर्थ को, माने अपना नाथ ।।
दाता तेरे खेल को, जान सका है कौन ।
अभिमानी हर शोर को, पल में करता मौन ।।
आभासी संसार के, आभासी हैं रंग ।
फिर भी करता जीव ये, नित्य अर्थ से जंग ।
सुशील सरना / 19-6-24