दोहा पंचक. . . .
दोहा पंचक. . . .
जब तक बैठी पास माँ , कर लो दिल की बात ।
आशीषों की फिर कहाँ, पाओगे सौगात ।।
वसन जुदा तन से हुए, अधर हुए उद्दंड ।
मौन चरम गुस्ताखियाँ, होती गईं प्रचंड ।।
कैसी है यह प्रेम की, तन में जलती आग ।
बिन बोले होते स्वरित , मौन सुरों के राग ।।
झुके नैन में शर्म का , होता है अहसास ।
बड़ी अजब इस झील में, उठती गिरती प्यास ।।
मनुहारों में हो गए , व्याकुल मन के भाव ।
बाँहों में ऐसी गिरी, जैसे जल में नाव ।।
सुशील सरना / 18-5-24