दोहा पंचक. . . . .
दोहा पंचक. . . . .
लँगड़ा दौड़े दौड़ में, गूँगा गाए गीत ।
बहरों की सब टोलियाँ , चलें दिशा विपरीत ।।
व्यथा पूछ उस वृक्ष से, जिसके टूटे पात ।
जिसकी डालें सह रहीं, तीव्र ताप आघात ।।
झूठ सहज लगता यहाँ, सुख दे यह भरपूर ।
आदत जो इसकी पड़े, बनता यह नासूर ।।
ताप भयंकर हो गया, बच कर रहना यार ।
तपती सड़कों पर हुआ, अब चलना दुश्वार ।।
सुशील सरना / 10- 5-24