दोहा पंचक. . . विविध
दोहा पंचक. . . विविध
औरों पर जो जिंदगी, करते सदा निसार ।
उनकी यादों का नहीं , कम होता विस्तार ।।
क्या लाए जो छोड़कर, तुम जाओगे मित्र ।
दाता का संसार यह, चलता – फिरता चित्र ।।
कैसी है यह मधुबनी , जहाँ पीर ही पीर ।
सुमन हुए निर्गंध सब, मधुप बहाएं नीर ।।
अनुमोदन हो आपका, करें प्रेम संचार ।
मौन समर्पण से करें, जीवन का शृंगार ।।
जब होती है स्वार्थ की, आपस में तकरार ।
समझोते की आस फिर, हो जाती दुश्वार ।।
सुशील सरना / 28-12-24