दोहा पंचक. . . . वक्त
दोहा पंचक. . . . वक्त
हर करवट में वक्त की,छिपी हुई है सीख ।
आ जाए जो वक्त तो, राजा मांगे भीख ।।
डर के रहना वक्त से, ये शूलों का ताज ।
इसकी लाठी तो सदा, होती बे-आवाज ।।
पल भर की देता नहीं, वक्त किसी को भीख ।
अन्तिम पल की वक्त में , गुम हो जाती चीख ।।
बिना वक्त मिलता नहीं, किस्मत का भी साथ ।
कभी पहुँच कर लक्ष्य पर , लौटें खाली हाथ ।।
सुख – दुख की यह जिंदगी, सब तारों का खेल ।
कब करवा दे वक्त यह ,बिछड़ों का फिर मेल ।।
सुशील सरना/29-7-24