दोहा पंचक. . . . मजदूर
दोहा पंचक. . . . मजदूर
रात बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ ।
गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।।
सभी दिवस मजदूर के, जाते एक समान ।
दिन बीते निर्माण में, शाम क्षुधा का गान ।।
याद किया मजदूर के, स्वेद बिंदु को आज ।
उसकी ही पहचान है, , विश्व धरोहर ताज ।।
स्वेद बूँद मजदूर की, श्रम का है अभिलेख ।
हाथों में उसके नहीं , सुख की कोई रेख ।।
रोज भोर मजदूर की, होती एक समान ।
उदर क्षुधा से नित्य ही, लड़ती उसकी जान ।।
सुशील सरना / 1-5-24