दोहा पंचक – परिवार
दोहा पंचक – परिवार
वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन परिवार ।
बच्चों को कैसे मिलें , जीवन के संस्कार ।।
हर तिनके ने कर लिया, अपना- अपना नीड़ ।
मुखिया आँगन का कहे, किस को अपनी पीड़ ।।
बदल गया परिवार का,मौलिक मधुर स्वरूप ।
हर तिनका अब सह रहा , बिना छाँव की धूप ।।
चूल्हे सब एकल हुए, बिखर गए परिवार ।
बंधन सारे खून के , मिलने से लाचार ।।
स्वार्थ भाव ने खींच दी , आँगन में दीवार ।
दफ्न हुआ परिवार के, गठबंधन का प्यार ।।
सुशील सरना / 15-5-24