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15 May 2024 · 1 min read

दोहा पंचक – परिवार

दोहा पंचक – परिवार

वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन परिवार ।
बच्चों को कैसे मिलें , जीवन के संस्कार ।।

हर तिनके ने कर लिया, अपना- अपना नीड़ ।
मुखिया आँगन का कहे, किस को अपनी पीड़ ।।

बदल गया परिवार का,मौलिक मधुर स्वरूप ।
हर तिनका अब सह रहा , बिना छाँव की धूप ।।

चूल्हे सब एकल हुए, बिखर गए परिवार ।
बंधन सारे खून के , मिलने से लाचार ।।

स्वार्थ भाव ने खींच दी , आँगन में दीवार ।
दफ्न हुआ परिवार के, गठबंधन का प्यार ।।

सुशील सरना / 15-5-24

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