दोहा पंचक. . . . जीवन
दोहा पंचक. . . . जीवन
रहती है संसार में , कर्मों की बस गंध ।
इस जग में है जिंदगी, दो पल का अनुबंध ।।
आभासी संसार के, आभासी संबंध ।
मिट जाता जब सब यहाँ, महके कर्म सुगंध ।।
जब तक साँसें देह में, चलें देह सम्बंध ।
शेष रहे संसार में, जीव कर्म की गंध ।।
यक्ष प्रश्न है जीव के, जनम-मरण का फेर ।
प्राण बिन्दु के मर्म को , हेर सके तो हेर ।।
साँसों के विश्राम तक, मिटा न मन का मोह ।
करते-करते सो गया , जीव सत्य की टोह ।।
सुशील सरना / 14-6-24