दोहा पंचक. . . जीवन
दोहा पंचक. . . जीवन
सोच लिप्त संदेह से, मन उलझन का धाम ।
प्रश्न शूल आहत करें, उत्तर को हर याम ।।
जीवन की यह गुत्थियाँ,भ्रमित करें दिन रैन ।
सुलझाते जीवन गया, मिला न मन को चैन ।।
कभी सताती लालसा, कभी सताता काम ।
ऐसी पंकिल झील से , मुक्त करें श्री राम ।।
जीवन के सुख चैन को, शंका जाती लील ।
बिना निवारण यह सदा, चुभती जैसे कील ।।
जीवन घट को सींचता , इच्छाओं का नीर ।
इसमें जीना अंत तक, जीवन की तासीर ।।
सुशील सरना / 1-12-24