दोहा पंचक. . . . चिट्ठी
दोहा पंचक. . . . चिट्ठी
कहाँ गईं वो चिट्ठियाँ, कहाँ गया वो प्यार ।
शब्द -शब्द में वेदना, की बहती थी धार ।।
पीली चिट्ठी प्यार की, जब आती थी द्वार ।
बिछड़ों को जैसे मिले, अपनों का संसार ।।
हर अक्षर में नेह के, होते थे संबंध ।
पीली चिट्ठी क्या गई, मिटी नेह की गंध ।।
खाकी थैला डाकिया, ले जाता हर द्वार ।
संबंधों का बाँटता , घर -घर वो संसार ।।
छींटे केसर के करें, खुशियों की बरसात ।
कोना चिट्ठी का फटा,दुख का दे आघात ।।
सुशील सरना / 12-6-24