दोहा पंचक. . . . . गर्मी
दोहा पंचक. . . . . गर्मी
मेघा बरसें बाद में, पहले बरसे आग ।
सागर से लेकर चलें, बादल मीठे राग ।।
धरती अम्बर तप रहे, सूखे सारे ताल ।
घर से बाहर धूप तो , लगती जैसे काल ।।
कमरों में सब बन्द हैं, सड़कें हैं सुनसान ।
जीव -जन्तु व्याकुल सभी, रहम करो भगवान ।।
कूलर पंखे हांफते , लू की चली बयार ।
इन्द्रदेव से वृष्टि की, करने लगे गुहार ।।
पृथ्वी पर इस ताप का, कुछ तो करो निदान ।
आफत में हर जीव की, आज हुई है जान ।।
सुशील सरना / 23-5-24