दोहा पंचक. . . . काल
दोहा पंचक. . . . काल
जाने कल क्या वक्त का , होगा नया कमाल ।
कदम – कदम पर जिंदगी, करती यही सवाल ।।
पढ़ पाया है आज तक, कौन काल की चाल ।
इसकी हर एक चाल का, अर्थ बड़ा विकराल ।।
आहट होती ही नहीं, जब चलता है काल ।
इसके पर्दे में छुपा, जीवन बना सवाल ।।
काल न जाने भूख को, काल न जाने प्यास ।
काल पाश में जीव की , बन्दी जीवन श्वांस ।।
रह जाता सब कुछ धरा , जब आता है काल ।
ले जाता सब साथ में, इसका निर्मम जाल ।।
सुशील सरना / 16-5-24