दोहा पंचक. . . . . कल
दोहा पंचक. . . . . कल
कल पर कुछ मत छोड़ना, कल का नहीं यकीन ।
दो साँसों की जिंदगी, होती बड़ी महीन ।।
कल में छल का वास है, कल तो है आभास ।
कल के अदृश्य कुण्ड में , सिर्फ प्यास ही प्यास ।।
कल में कल की कल्पना, छल करती हर बार ।
अभिलाषा छलनी करे, अनदेखा संसार ।।
कल के हर परिणाम का, वर्तमान आधार ।
करता हर कल आज के, कर्मों को साकार ।।
कल के पर्दे में छुपा, जीवन का हर राज ।
साँसों के दो तार हैं, इस कल के मुहताज ।।
सुशील सरना 1-11-24