दोहा पंचक. . . . कल
दोहा पंचक. . . . कल
कल में कल की कामना, छल करती हर बार ।
कल के चक्कर में फँसा, यह सारा संसार । ।
कल तो नाम है काल का, कल का क्या विश्वास ।
कल में छल का वास है, कल तो केवल प्यास ।।
कल में कल की कल्पना, लेती रूप हजार ।
वर्तमान को भेद कल, करे सपन साकार ।।
कल आऐ किस रूप में, पर्दे की है बात ।
खुल जाऐंगे राज सब, ढल जाने दो रात ।।
कल में जीती जिंदगी, कल में जीती आस ।
कल से मुँह मत मोड़िये, कल सपनों का वास ।।
सुशील सरना / 24-11-24