दोहा पंचक. . . . . उल्फत
दोहा पंचक. . . . . उल्फत
जीना है तो सीख ले ,विष पीने का ढंग ।
बड़े कसैले प्रीति के,अब लगते हैं रंग ।
छलिया आँखों में नहीं,वो पहले सा प्यार ।
झूठे वादों से भरा, उल्फत का संसार ।।
झूठी निकली कल्पना, झूठे निकले संग ।
स्वार्थ आवरण में घुटी, मन की मदन उमंग ।।
कैसे उसकी बात का, यह दिल करे यकीन ।
उल्फ़त के विश्वास का, धागा बड़ा महीन ।।
उल्फत में धोखे बहुत , खाता है इंसान ।
फिर भी बहके हुस्न के, जलवों में ईमान ।।
सुशील सरना / 14-8-24