दोहा पंचक. . . .इश्क
दोहा पंचक. . . .इश्क
क्या सोये दिल इश्क में,खड़े सिरहाने ख्वाब ।
नशा हुस्न का यूँ चढ़ा, फीकी लगी शराब ।।
उफ्फ बला की शोखियाँ, वो कातिल अंदाज ।
धीरे-धीरे वस्ल में, राज रहे ना राज ।।
दो लफ्जों में दे दिया, उल्फत का पैगाम ।
इन्तिज़ार में काट दी, हमने उम्र तमाम ।।
रह -रह कर उड़ती रही, रुख पर गिरी नकाब ।
आँखों के अल्फाज़ को, समझा नहीं शबाब ।।
सुर्ख आरिजों पर हया , ऐसा करे कमाल ।
आ कर फिर उस शोख का , जाता नहीं खयाल ।।
सुशील सरना / 21-5-24