दोहा पंचक. . . . . अर्थ
दोहा पंचक. . . . . अर्थ
बिना अर्थ के व्यर्थ है, धर्म- कर्म की बात ।
अर्थ बिना मिलता नहीं, कभी उदर को भात ।।
अर्थ पिपासा कब मिटी, मिट जाता इंसान ।
अर्थ पंक प्रासाद को , पागल समझे शान ।।
अर्थ सकल संसार में, बदले जीवन अर्थ ।
बिन इसके तो जिंदगी, लगती जैसे व्यर्थ ।।
अर्थ सुहानी भोर है, अर्थ सुहानी शाम ।
अर्थ कुंड के विष भरे , लोभी पीता जाम ।।
धन लोलुप संसार में, सब को धन की प्यास ।
धन रिश्तों से छीनता, आपस का विश्वास ।।
सुशील सरना / 2-6-24