दोहा पंचक . . . अन्तर्जाल
दोहा पंचक . . . अन्तर्जाल
गूगल से मत पूछना, अपने दिल का हाल ।
यह क्या जाने प्रेम का, कितना उलझा जाल ।।
बच्चे अन्तर्जाल पर , भटक रहे हैं आज ।
दुर्व्यस्न में भूलते, जीवन की परवाज़ ।।
कौतूहल में आजकल , भूलें राह किशोर ।
कामुकता के पंक में , होते व्यर्थ विभोर ।।
रहते अन्तर्जाल में, अब तो अतिशय व्यस्त ।
नव पीढ़ी के लक्ष्य सब,इसमें होते ध्वस्त ।।
बिगड़ न जाए लाड़ला, रखना जरा खयाल ।
आदत अन्तर्जाल की , होती है विकराल ।।
सुशील सरना / 6-12-24