दोहा पंचक. . . . अधर
दोहा पंचक. . . . अधर
अधर समर्पण से हुए, उदित अजब जज्बात ।
साँसों में हलचल हुई, मद में डूबी रात ।।
अनबन नयनों की हुई, नयनों से कल रात ।
सहमे- सहमे हो गए, अधरों के जज्बात ।।
अंतर्मन के रात को , स्वरित हुए जज़्बात।
अधर, अधर से कर गए,शरमीली सी बात।।
अधरों से उलझे अधर , मिले नैन से नैन ।
स्पर्शों के दौर में, बीती अद्भुत रैन ।।
चकित यामिनी हो गई, देख अधर की जंग ।
अमिट कपोलों पर हुए, प्रणय मिलन के रंग ।।
सुशील सरना / 28-5-24