दोहा त्रयी. . .
दोहा त्रयी. . .
किसने जाना आज तक, मानव मन का भेद ।
सुख की गागर में करें, अपने ही सौ छेद ।।
कैसे- कैसे स्वार्थ में, बन्दा करता कृत्य ।
धन संचय में भूलता , जीवन का लालित्य ।।
अन्त हुआ सब आ गए, झूठे जग के मीत ।
मिली मृदा में देह सब, चले राह विपरीत ।।
सुशील सरना / 8-12-24