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30 Sep 2024 · 1 min read

दोहा त्रयी. . . .

दोहा त्रयी. . . .

निन्दा होती झूठ की, सच को मिलता मान ।
टूट गया सच बाण से , रावण का अभिमान ।।

यह जग तो आभास है, वो जग अनबुझ प्यास ।
इस जग में संत्रास तो , उसमें सुख का वास ।।

कल में छल का वास है, कल का क्या विश्वास ।
कल तो बस आभास है , कल में केवल प्यास ।।

सुशील सरना / 30-9-24

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