दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
निन्दा होती झूठ की, सच को मिलता मान ।
टूट गया सच बाण से , रावण का अभिमान ।।
यह जग तो आभास है, वो जग अनबुझ प्यास ।
इस जग में संत्रास तो , उसमें सुख का वास ।।
कल में छल का वास है, कल का क्या विश्वास ।
कल तो बस आभास है , कल में केवल प्यास ।।
सुशील सरना / 30-9-24