दोहा त्रयी. . . . .
दोहा त्रयी. . . . .
नयन बड़े बेशर्म हैं, नयनों का क्या धर्म।
प्रीत सयानी जानती , प्रणय क्षुधा का मर्म।।
अभिसारों के वेग में, टूट गए सब बंध ।
अन्तर्घट तक बस गई, मौन पलों की गंध ।।
अंतस के उद्वेग जब, होने लगे साकार ।
प्रणय क्षुधा ने रच लिया , फिर अपना संसार ।।
सुशील सरना / 9-5-24