दोहा त्रयी. . . . .
दोहा त्रयी. . . . .
टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।
कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।
मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।
दो जिस्मों की साँस का, मिटा वस्ल में फर्क ।।
प्याले छलके बज्म में, मचला ख्वाबी नूर ।
निभा रहे थे लब वहीं, बोसों का दस्तूर ।।
सुशील सरना / 24-4-24