दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
भाग्य बदलने के लिए, करो कर्म शृंगार ।
परिवर्तन से नाम के , कब होता उद्धार ।।
जीवन के दो रूप हैं, एक छाँव अरु धूप ।
धूप – छाँव के भोग को, भोगे निर्धन भूप ।।
मौसम के उपहार हैं, पतझड़ अरु मधुमास ।
मरीचिका के तीर पर, सिर्फ प्यास ही प्यास ।।
सुशील सरना / 2-4-24