दोहा त्रयी. . . . शृंगार
दोहा त्रयी. . . . शृंगार
अधर तटों पर कर गए, अधर अमर शृंगार ।
बंजारी सी प्यास में, हार गए इंकार । ।
नैन मिले जब नैन से, जागी मन में प्रीत ।
दो पल में सदियाँ मिटी, बनी हार भी जीत ।।
नैन करें जब नैन से, अधर पाश मनुहार ।
मधुर पलों की कल्पना, पल में हो साकार ।।
सुशील सरना / 2-9-24