दोहा छंद
दोहा छंद
प्रीत रागिनी खिल उठी, मन में उठे तरंग।
नित्य भोर में आस की,जगती नवल उमंग।।
महका महका सा चमन, महक उठा संसार।
प्रेम भाव से खिल रहा,मेरा घर परिवार।।
रचना करे विधान से, सोचे समझ विचार।
नवल सृजन जब भी करे,जीवन का हो सार।।
मानस करता सोच कर,अंतस लेता भान।
भाव तौल का फ़र्क ही, इनकी यह पहचान।।
मधुर वचन मन मोहते, रिश्तों का हो जोड़।
गुण से ही मनु भा चले, दुर्गुण करते तोड़।।
योगमाया शर्मा
कोटा राजस्थान