दोहा चौका. . . .
दोहा चौका. . . .
वैभव का मधुमास तो, कालचक्र का दास ।
इसी रास पर जिंदगी, करती हरदम रास ।।
भूप रंक को एक सी , लगे नीर की प्यास ।
सुख सारे क्यों भूप को, दुख क्यों निर्धन पास ।।
रंग बदलती जिन्दगी, मौसम के अनुरूप ।
जीवन में हरदम चले, संग छाँव के धूप ।।
जीवन भर रहता नहीं, जीवन में मधुमास ।
निर्धन का अच्छा नहीं, करना यूँ उपहास ।।
सुशील सरना / 28-10-24