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22 Feb 2022 · 5 min read

दोहा गीत (एक साथ)

9
सहकर जग का दर्द तू, रख मुख पर मुस्कान
नारी तेरे रूप की, ये असली पहचान

पहन मौन की ओढ़नी, सुन सबका संवाद
नारी का जेवर यही, रखना हर पल याद
अपने सपनों का तुझे, करना है बलिदान
नारी तेरे रूप की, ये असली पहचान

देना तुझको ताड़ना, है इस जग की रीत
जीवन में होंगे सदा, आँसू तेरे मीत
तेरे हिस्से में नहीं , मान और सम्मान
नारी तेरे रूप की, ये असली पहचान

काँटों का रहता सदा ,तेरे सिर पर ताज
रानी बनकर तू करे, सारे घर पर राज
मीठा कड़वा जो मिले, हँसकर करती पान
नारी तेरे रूप की, ये असली पहचान
06-06-2022
8)

सावन की ऋतु आ गई, छाने लगी बहार
भावों में बहने लगी, प्रीत भरी रसधार

नव कलिका को चूमकर, भँवरे गाते गान
रंगबिरंगी तितलियाँ, लुटा रहीं मुस्कान
कूक कोकिला की रही, मन में मिश्री घोल
देख नाचते मोर को, रहा पपीहा बोल
पवन सुगंधित दे रही, सपनों को आकार
सावन की ऋतु आ गई, छाने लगी बहार

लगता सूनापन बहुत, पिया गये परदेश
उनके आने में अभी, बचे बहुत दिन शेष
बातें होती फोन पर, मन फिर भी बेचैन
काटे से कटते नहीं, दिन हो चाहें रैन
अगन लगाती देह में, ये रिमझिम बौछार
सावन की ऋतु आ गई, छाने लगी बहार

7)

मीरा सी दीवानगी, राधा जैसी प्रीत
श्याम तुम्हारी भक्ति की, चली आ रही रीत

गोवर्धन को थामकर, तोड़ा इंद्र गुरूर
नाग कालिया मारकर, कष्ट किये सब दूर
कानों में गूँजा मधुर, वंशी का संगीत
श्याम तुम्हारी भक्ति की, चली आ रही रीत

चक्र सुदर्शन से किया, दुष्टों का संहार
गीता का उपदेश दे, तार दिया संसार
हरे कृष्ण अरु राम के, गूँज रहे हैं गीत
श्याम तुम्हारी भक्ति की, चली आ रही रीत

भावों का लेकर दिया, बाती शब्द कपास
करूँ तुम्हारी ‘अर्चना’, पूरी करना आस
दूर रहूँ अभिमान से, रहे स्वभाव विनीत
श्याम तुम्हारी भक्ति की, चली आ रही रीत

6)

मत अज्ञानी बन यहाँ, ओ भोले इंसान
जीवन ये अनमोल है, रखले अपना ध्यान

आँखों में जो पल रहे, तेरे अनगिन स्वप्न
पूरा करने को उन्हें, करने होंगे यत्न
माना लंबा है सफ़र, मगर न मान थकान
मत अज्ञानी बन यहाँ, ओ भोले इंसान

मोती मिलते हैं कभी, रिक्त कभी हैं हाथ
चलती है ये ज़िन्दगी, हार- जीत के साथ
पाने को ऊँचा गगन, भरनी पड़े उड़ान
मत अज्ञानी बन यहाँ, ओ भोले इंसान

सद्कर्मों के साथ रख, सदाचार के भाव
भव से होगी पार तब, जीवन की ये नाव
छोटी सी है ज़िन्दगी, दे खुद को पहचान
मत अज्ञानी बन यहाँ, ओ भोले इंसान

5)

बाबा तेरी लाडली, हुई बहुत लाचार
माधव भी आये नहीं, सुनकर करुण पुकार

माँ ने जीवन भर किया, मेरा बड़ा दुलार
बाबा तूने भी दिया, मुझे असीमित प्यार
अब समझी हूँ तात मैं, तेरे दिल की बात
क्यों बाहर के नाम पर, किया सदा इंकार
बाबा तेरी लाडली, हुई बहुत लाचार

दिखने में वो जानवर, इतने थे खूँखार
मेरे सभी प्रयास भी, हुये वहाँ बेकार
बाबुल तू भी था नहीं, उस दिन मेरे पास
लड़ते लड़ते मैं गई, अपना जीवन हार
बाबा तेरी लाडली, हुई बहुत लाचार

अंधे इस कानून में, मौन रही सरकार
सड़कों पर लगता रहा, गुंडों का दरबार
इसीलिये तो बेटियाँ, डर से हैं भयभीत
सरे आम ही हो रहा, अस्मत पर है वार
बाबा तेरी लाडली, हुई बहुत लाचार

4)

समझा जिनको मीत था, गये राह में छोड़
हमने सोचा था नहीं, आएगा ये मोड़

वादे बड़े बड़े किये, बाँधी दिल में आस
धीरे धीरे बन गये, सब से खासमखास
मगर उन्होंने दिल दिया, ज़रा बात पर तोड़
हमने सोचा था नहीं, आएगा ये मोड़

हमने बंधन डोर थी, पकड़ी मुट्ठी भींच
मगर उन्होंने तोड़ दी, वही अहम से खींच
जोड़ेंगे भी अब अगर, आ जायेगा जोड़
हमने सोचा था नहीं, आएगा ये मोड़

दिल में की थी प्रीत की, शुरू उन्होंने रीत
और हमारी जीत भी, मानी अपनी जीत
आज हराने की हमें, ठानी मन में होड़
हमने सोचा था नहीं, आएगा ये मोड़

3)

गया समय आता नहीं, कभी हमारे पास
जीवन का हर मोड़ ही, होता है कुछ खास

जैसे पहुँचे साँझ तक, उगी सुनहरी भोर
वैसे ही ये ज़िन्दगी, चले मौत की ओर
जीवन हो या हो मरण, नहीं हमारे हाथ
समय चलाता है हमें, हम सब उसके दास
जीवन का हर मोड़ ही, होता है कुछ खास

होते हैं उस वक़्त ही, हम कितना मज़बूर
कष्ट हमारे पास हो, अपने हों जब दूर
रहता बड़ा उदास है, दिल हर पल दिन रात
रहती मन में हर समय, अच्छे दिन की आस
जीवन का हर मोड़ ही, होता है कुछ खास

कर्तव्यों की राह पर, सदा निभाई रीत
हम तो बस चलते रहे, हार मिली या जीत
अपनों ने ही दे दिया, जब काँटों का ताज
अपने मन की पीर का, तभी हुआ अहसास
जीवन का हर मोड़ ही, होता है कुछ खास

2)

कविता सँग जब से हुआ, मेरे मन को प्यार
कविता तब से बन गई, जीने का आधार

देखूँ इसमें मैं सदा, पर पीड़ा की छाप
कभी तपाता है इसे, मेरा भी संताप
कविता ही हर दर्द का, बन जाती उपचार
कविता सँग जब से हुआ,मेरे मन को प्यार

कविता के द्वारा करूँ, भावों का शृंगार
कविता ढलकर छन्द में, बरसाती रसधार
कविता में ऐसा नशा, जुड़ते दिल के तार
कविता सँग जब से हुआ,मेरे मन को प्यार

कविता रहती ‘अर्चना’, मेरे दिल के पास
होने ही देती नहीं, दिल को कभी उदास
गागर में सागर भरे, बन जीवन का सार
कविता सँग जबसे हुआ, मेरे मन को प्यार

1
पीले कपड़ों को पहन, आया है मधुमास
संगी साथी कर रहे, हास और परिहास

झूम झूम कर गा रही, कोयल मीठा गान
सन सन चलकर ये पवन,खूब मिलाये तान
चला युगों से आ रहा, बासन्ती इतिहास
पीले कपड़ों को पहन, आया है मधुमास

सूरजमुखी ,डहेलिया, खिलता सुर्ख गुलाब
लिए फूल की टोकरी, खड़ा बसन्त जनाब
पुलकित है पावन धरा, जन मन में उल्लास
पीले कपड़ों को पहन , आया है मधुमास

दिल पर सीधे चल रहे , कामदेव के तीर
लगा प्यार के लेप को, दूर करेंगे पीर
कुदरत धरती पर उतर, रचा रही है रास
पीले कपड़ों को पहन, आया है मधुमास

पतझड़ को कह अलविदा, सोना उगलें खेत
बीत न जाये ये समय , मानव मन तू चेत
सारे गम को भूलकर, करले अब तो मौज
होता पूरे साल में, माह बहुत ये खास
पीले कपड़ों को पहन, आया है मधुमास

डॉ अर्चना गुप्ता

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