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6 Jul 2024 · 1 min read

दोहा ग़ज़ल

एक नई विधा में आज –

पत्थर बने शरीर में, आशाओं के पाँव ।
चलते चलते थक गये, शहरों में अब गाँव ।।

छूट गयी पीछे बहुत,अब महुआ की गन्ध ,
भूले भटके ही मिले ,अब पीपल की छाँव ।

रेहट कुएँ बैल सभी, हुए एक इतिहास ।
चकली जाँता ओखली, रखे न घर में ढाँव ।

गुल्ली कंचे कौड़ियाँ ,दफन हुए सब खेल ,
खेल रहे अब गाँव में, नये कपट के दाँव ।

शहर निगलते जा रहे , गाँवों के आह्लाद,
अतिथि बुलाने को नही ,कौवों के भी काँव ।

Language: Hindi
2 Likes · 73 Views
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