दोहा -: कहें सुधीर कविराय
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माँ से बढ़कर कुछ नहीं
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माँ से बढ़कर कुछ नहीं, दुनिया सकल जहान।
जीवन उनका है सफल, जिनको इसका ज्ञान।।
मां से बढ़कर कुछ नहीं, मां बच्चे की जान।
नव पीढ़ी को अब कहाँ, होता इसका भान।।
माँ से बढ़कर कुछ नहीं, माँ ही है आधार।
माता के आंचल बिना, सूना ये संसार।।
मां से बढ़कर कुछ नहीं, ज्ञान, ध्यान, तप, दान।
माँ से ही मिलता हमें, जीवन का विज्ञान।।
माँ से बढ़कर कुछ नहीं, कहाँ समझते आप।
सहती केवल मातु है, जीवन भर संताप।।
ये दुनिया तो गोल है, हर कण का कुछ मोल।
माँ से बढ़कर कुछ नहीं, दुनिया में अनमोल।।
खुले नयन जब भोर में, आता पहला नाम।
समझ नहीं मैं पा रहा, रिश्ता है या धाम।।
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दाता/ईश्वर/ईश/राम
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सबके दाता राम है, इतना रखना याद।
नहीं और कोई सुने, हम सबकी फरियाद।।
दाता बनने का कभी, नहीं कीजिए दंभ।
ईश्वर की मर्जी बिना, कब होता आरंभ।।
ईश्वर की ही है कृपा, इस जीवन में यार।
मानव तन के संग में, सुंदर सा संसार।।
भूखे नंगे लोग भी, बनते बहुत महान।
करते ऐसे कर्म हैं, जैसे ईश समान।।
ईश्वर ने हमको दिया, ये जीवन अनमोल।
कम से कम इतना करो, धन्यवाद दो बोल।।
तन मन का भी मोल है, इसका रखना ध्यान।
करने पड़ते हैं हमें, हर कर्तव्य विधान।।
राम नाम मन धार के, करिए अपना कर्म।
अपने जीवन ढालिये, नीति नियम का मर्म।।
प्रमुदित होकर भोर में, जपो राम का नाम।
कष्ट मिटेगा मान लो, होगा सारा काम।।
प्रेम सभी से मत करो, ये सब है बेकार।
दुनिया इतनी स्वार्थी, देती मार कटार।।
नेकी करके भूल जा, नहीं पलटकर देख।
नहीं बनाना तू कभी, नेकी का अभिलेख।।
राम नाम सबसे बड़ा, जपते रहिए आप।
मिट जाते जिससे सभी, रोग शोक संताप।।
हो जाए यदि भूलवश, हमसे कोई पाप।
सुखद निवारण के लिए,करें राम का जाप।।
कलियुग में करते रहें, चाहे जितने पाप l
संग राम या श्याम हों, फल भोगेंगे आप ll
राम कृपा से चल रहा, समय चक्र का खेल।
सबके अपने भाग्य हैं, कभी पास या फेल।।
राम कृपा से राम जी, काटे चौदह वर्ष।
मुक्ति मिली दिग्गी को, फैल गया उत्कर्ष।।
चौदह वर्षों की साधना, कठिन भरत ने कीन्ह।
लौट अवध में राम जी, धन्य हृदय कर दीन्ह।।
राम नाम सबसे बड़ा, जपते रहिए आप।
मिट जाते जिससे सभी, रोग शोक संताप।।
रावण था पापी बड़ा, चाहे जितना यार।
उसका भी श्री राम ने, कर दीन्हा उद्धार।।
देखी हनुमत जब सिया, नैनन से भरपूर।
राम मुद्रिका पाय के, मन में जागा नूर।।
आज दिवस शनिदेव का, शीश झुकाते भक्त।
नहीं सत्य है ये तनिक, शनि हैं केवल सख्त।।
सुनिए सबकी प्रार्थना,शनीदेव जी नाथ।
भक्त जनों के कष्ट को, हरो थाम कर हाथ।
सुबह सबेरे नित्य जो, चरण छुएँ पितु मात।
खुश रहते हैं वे सदा, दूर रहें आघात।।
सुबह सुबह फिर हो गया, जीवन में संग्राम।
जब तक चलती सांस है, मिले कहां विश्राम।।
आंख खुले खोजूँ तुझे, यही हो रहा रोज।
भटक रहा मैं आज भी, नहीं पा रहा खोज।।
माना तू देवी नहीं, फिर भी करती तंग।
शीष झुकाऊं नित तुझे, छोड़ संग में जंग।।
आंसू तेरी आंख का, देता मुझे रुलाय।
समझा दे कोई मुझे, ये कैसे हो जाय।।
नाता उससे है नहीं, फिर भी है संबंध।
ईश कृपा से बन गया, रिश्तों का अनुबंध।।
नहीं हार हूं मानता, नहीं जीत की चाह।
जीवन बीता जा रहा, मन में है उत्साह।।
आँसू उसके बह रहे, शब्द हुए थे मौन।
पता चला था तब मुझे, आखिर वो है कौन।।
सिर पर मेरे जब रखा, उसने अपना हाथ।
तब मुझको ऐसा लगा, दुनिया मेरे साथ।।
गले लगाकर पीठ पर, फेरा उसने हाथ।
नत मस्तक मैं हो गया, पाकर उसका साथ।।
उसके चरणों में झुका, जब जब मेरा शीष।
तब तब मुझको है मिली, खुशियों की बख्शीश।।
पत्नी जीवन सार है, पत्नी ही संसार।
बिन पत्नी तकरार से, नीरस होता प्यार।।
पति पत्नी में हो रही, रोज रोज तकरार।
फूटी थी किस्मत मेरी, जीवन है बेकार।।
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समय
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जाग अरे इंसान तू, समय बड़ा बलवान।
समय बड़ा है कीमती, बात सही यह जान।।
समय चक्र है घूमता, सदा दिवस औ’ रात।
मिलते सारे फल यहीं, हमें नहीं है ज्ञात।।
वक्त सभी शुभ मानता, बनता वही महान।
शुभ होता हर वक्त है, समय सदा बलवान।।
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आँधी
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आँधी भ्रष्टाचार की, बहती चारों ओर।
इस आंधी को रोक ले, किसमें इतना जोर।।
आंधी पानी पर नहीं, रहा हमें विश्वास।
जाने कब ये तोड़ दे, जन मन की हर आस।।
वादों की भरमार है, आँधी लगे चुनाव।
हर दल को विश्वास है, पार लगेगी नाव।।
आँधी है विश्वास की, बढ़ता आगे देश।
पर कुछ लोगों के लिए, यही बना अति क्लेश।।
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नहीं तलाशी ले रहें, छिपा छिपाकर राज।
अपराधी के सिर सजें, अब तो नूतन ताज।।
करो पैरवी झूठ की, रख मन झूठा दंभ।
है प्रथा अच्छी नहीं, कर फिर भी प्रारंभ।।
महँगाई के दौर में, मुश्किल जग निर्वाह।
थोड़े में संतोष कर, छोड़ें अति की चाह।।
भारत ऐसा देश है, दुनिया करे सलाम ।
बड़े बड़े अब देश भी, लें इज्जत से नाम।।
गुरुजन देते ज्ञान को, अब बहुतेरे ढंग।
हम भी यदि ग्रहण करें , आये नूतन रंग।।
नमन शहीदों को करें, हम सब बारंबार।
आजादी हित देश की, छोड़ गये संसार।।
माथा टेकूँ आपके, दर पर सुबहो शाम।
महावीर संकट हरो, जपूं तिहारो नाम।।
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मतदान
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निद्रा देवी कह रही, जाग अरे इंसान।
पहले कर मतदान तू, फिर ले चादर तान ।।
जनता ही तो कर रही, नेता का निर्माण।
वोट बीच अटके हुए, नेता जी के प्राण।।
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विरोध
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नेता जी के कृत्य का, करते नहीं विरोध।
नेता जी जब फँस गए, वे कहते प्रतिशोध।।
मत विरोध करिए कभी, झूठ- मूठ श्रीमान।
आप भले इन्सान हो , वो क्या है भगवान।।
आज शगल है बन गया, करते हम प्रतिरोध।
सही ग़लत जाने बिना, निभा रहे हैं क्रोध।।
सत्य विरोधी हैं सभी, बना झूठ हथियार।
सत्य झूठ साबित करें, लीप पोत घर बार।।
गलत बात का हम सभी, करते रहे विरोध।
सत्य कभी नहिं हारता, होता कहां है बोध।।
धक्के खाता सत्य है, बढ़े झूठ सम्मान।
जिसने किया विरोध है, होता उसका ध्यान।।
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संतोष
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जीवन में संतोष ही, खुशियों का आधार।
फँसालोभ के जाल जो, पाता कष्ट अपार।।
जो नसीब से मिल गया, मुझे बड़ा संतोष।
श्रम करता हूं प्रेम से, ये ही मेरा कोष।।
जिसके मन संतोष है, वो होता धनवान।
असंतोष में जो फंसा, सांसत उसकी जान।।
शीष झुकाऊँ जब तुझे, मिलता बड़ा सुकून।
बढ़ जाती मेरी खुशी, हो जाती है दून।।
बिना गुरू मिलता कहाँ, इस दुनिया में ज्ञान।
पढ़ा लिखा गुरु के बिना, जैसे रेगिस्तान।।
कलयुग में नित हो रहा, कैसा कैसा पाप।
संग राम के नाम का, जमकर होता जाप।।
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गर्मी/ग्रीष्म
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हर दिन बढ़ता जा रहा, गर्मी का संताप।
हर प्राणी व्याकुल दिखे, फटता मानव पाप।।
हर प्राणी व्याकुल दिखे, धरती है बेचैन।
तकनीकों के जाल में, तोड़ रहा दम चैन।।
कब तक सोता तू रहे, जाग अरे इंसान।
सोकर आखिर क्या मिले, बनता तन श्मशान।।
कथनी करनी जब मिले, तब लेना तुम जान।
निश्चित बढ़ता जाएगा, हर दिन तेरा मान।।
साबित करना आप को, करो श्रम भरपूर।
चोरी करना पाप है, रहना इससे दूर।।
उषा काल में जो जगा , वीर स्वस्थ शरीर ।
धूप चढ़े जो जग रहा , बीमारी गंभीर।।
गर्मी ऐसे बढ़ रही, जैसे जंगल आग।
धधक रही अपनी धरा, तड़पें कोयल काग।।
जलचर,थलचर हैं सभी, गर्मी से बेहाल।
दोषी हम सब हैं सभी, कैसे पूछें हाल।।
झुलस रहें पशु पक्षी, सूख रहे हैं वृक्ष।
गर्मी के इस जाल में, उलझा मानव दक्ष।।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश