दोहावली
दोहावली
द्रवित हुए दृग द्वार से, अंतस के उद्गार ।
दर्द अनेकों दे गए, छलिया के अभिसार ।।
मन में मौसम प्यार का, छोड़ो भी इंकार ।
समझो अंतस मौन में , धड़कन की मनुहार ।।
हुआ नैन का नैन से, मौन प्रणय संवाद ।
दिल में मचले रात भर, उल्फत के उन्माद ।।
गौर वर्ण पर स्वेद की, बूँदें करें कमाल ।
भानु ताप से हो गए, रक्तिम गौरे गाल ।।
सुशील सरना / 20-4-24