दोहावली-रूप का दंभ
श्रेष्ठ रूप का दंभ भर, करते बहुत गुमान ।
अंत समय जाना पड़ा, सबको है शमशान ।।
मानवता का धर्म अरु, नेक कर्म अनमोल ।
मृदुवाणी ही जानिए, दे अंतर रस घोल ।।
रंग भेद को त्यागकर, गढ़े श्रेष्ठ प्रतिमान ।
मानवता को थामकर, बनें हृदय की शान ।।
गोरा तन कुछ का रहे, कुछ मन काला होय ।
चतुराई से छल करें, पृष्ठ घात पर रोय ।।
आशा आजाद “कृति”
मानिकपुर हकोरबा छत्तीसगढ़