दोहरी जिम्मेदारी
सुधा की आँखों के सामने आफिस का दृश्य घूम गया:
“आज बहुत से विकलांग बन्धु अपने विकलांगता का प्रमाण पत्र लेने आने वाले थे , जो उसे तैयार करने थे , बड़ी उम्मीद से वह सब आयेंगे, जिन्हें स्कूल- कालेज में एडमिशन और नौकरी के लिए जरूरत थी ।”
सुहधा ने सीढ़ियों से उतरते हुए घर के लोगों को कहते सुना :
” बहुत ढीठ लड़की है यह , अरे एक – दो दिन इसके आफिस नहीं जाने से आफिस बंद नहीं हो जायेगा ।”
” अरे पूजा-पाठ भी जरूरी है , इस तरह से उसका जाना ठीक नहीं है ।”
इसी के साथ सुधा को वह दिन भी याद आ गया , जब उसे एक इन्टरव्यू के लिए जाना था और उसको निवास प्रमाण पत्र की जरूरत थी, लेकिन जल्दी बना कर देने के लिए कोई सहयोग करने के लिए तैयार ही नहीं था । जब वह निराश हो कर लौट रही थी तभी आफिस के एक कर्मचारी ने उसकी समस्या सुनी और सहायता की , उसी दिन उसने यह निश्चय किया कि:
” वह अपने काम को ही पूजा मानेगी, और सभी को सहयोग करेगी ।”
आफिस आ कर सुधा ने सभी प्रमाण पत्र तैयार किए और अधिकारी के पास गयी ।
पूजा के बारे में उनको बता कर , लंच के बाद छुट्टी का अनुरोध किया ।
घर लोगों का गुस्सा कम नहीं हो रहा था , वह लगातार सुधा को अपशब्द बोले जा रही थी, और , पूजा का काम करने बजाए सुधा को कोस कर मजे ले रहे थे ।
सुधा ने घर आ कर पूजा का सब काम संभाल लिया ।
कोई कुछ भी कहे पर सुधा , अपने आफिस और घर के काम के लिए, लिए गये सही निर्णय से खुश थी
संतोष श्रीवास्तव