दोहरापन
“दोहरापन”
मैं अपनी नज़र में चाहे कितना भी बड़ा बेईमान रहा हूं
आप मेरी ईमानदारी पर शक करें, ये मुझे बर्दाश्त नहीं
मैं क्या हूं, और क्या नहीं हूं, है मुझे मालूम अंदर तक
पर आप, मुझे आइना दिखाएं, हां ये मुझे बर्दाश्त नहीं
दरअसल बहुत सारी परतों के पीछे छुपा हुआ बैठा हूं मैं
आप परत दर परत खोलें मुझे, ना, ये मुझे बर्दाश्त नहीं
अपनी मर्ज़ी से शतुरमुर्ग हूं, रेत में मुंह को छुपाए रहता हूं
आप मुझे असलियत से रूबरू करवाएं ये मुझे बर्दाश्त नहीं
हमेशा लेबुल, टेबुल से ही जाना है लेवल अपना औरों का
आप आज मुझे मेरी औकात दिखाएं, ये मुझे बर्दाश्त नहीं
~ नितिन जोधपुरी “छीण”