दोस्त
दोस्त
ऐसा दोस्त कहाँ पाएँगे?
इसे जीत कर हम लाएँगे।।
मिला राह में है प्यारा।
बना आज आँखों का तारा।।
इसके आगे तुच्छ जगत है।
इस प्रिय का उर से स्वागत है।।
नहीं कभी भी यह छूटेगा।
साथ हृदयतल से यह देगा।।
अति मधुरिम है दोस्त हमारा।
सदा चमकता उर्मिल न्यारा।।
मोह लिया प्रिय आसमान है।
शीतल मन में स्वाभिमान है।।
हाय दोस्त!मधु मादक अतिशय।
पा कर तुझे हुआ मन निर्भय।।
तुम मेरे अंतस में रहते।
कविता बनकर हरदम बहते।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी ।