*दोस्त*
डॉ अरुण कुमार शास्त्री ( पूर्व निदेशक – आयुष ) दिल्ली
बड़े नसीब से मिला करते हैं दोस्त दुनियाँ में ।
हरएक की कहाँ किस्मत में दोस्त दुनियाँ में ।
फकीरों सा अंदाज हुआ करता है यारों का मिरे यारा ।
हरएक के मिकदार पर कहाँ खरे उतरते दोस्त दुनियाँ में ।
मर्द हों याके हों औरत क्या फ़र्क पड़ता है दोस्त दुनियाँ में ।
दूर हों याके करीब हों कहलाते तो दोस्त दुनियाँ में ।
मैं तरसता ही रहा कोई हमदर्द मिल जाये सीने से लगाने को ।
शर्त इतनी सी है महज़ के हो खालिस दोस्त दुनियाँ में ।
खड़ा हो जो दीवार बन के मेरे और दुनिया की बीच ।
कोई इल्जाम जो आये अस्मत पे तो ढाल बन जाये ।
उठा कर चलूँ सरे आम सर अपना ऊंचा रखूँ ।
ऐसा यार हो मिरा फकत मेरी शान बन जाये ।
बड़े नसीब से मिला करते हैं दोस्त दुनियाँ में ।
हरएक की कहाँ किस्मत में दोस्त दुनियाँ में ।
गरीब हो अमीर हो इंसानियत से पीर हो फकीर हो ।
कदर जानता हो इखलाक की मस्त वो बो नजीर हो ।
तड़पन हो दिल में जिस्म में हो बिजलियाँ जनाब ।
दोस्त हो तो ऐसा जिसे मिलने को तड़प हो बे – हिसाब ।
ठंडक सी बसी हो , जिसकी तासीर में भई वाह क्या कहने ।
दोस्त के नाते वो शगूफ़ा हो नायाब , वाह वाह क्या कहने ।
बड़े नसीब से मिला करते हैं दोस्त दुनियाँ में ।
हरएक की कहाँ किस्मत में दोस्त दुनियाँ में ।
फकीरों सा अंदाज हुआ करता है यारों का मिरे यारा ।
हरएक के मिकदार पर कहाँ खरे उतरते दोस्त दुनियाँ में ।