दोस्तों बात-बात पर परेशां नहीं होना है,
दोस्तों बात-बात पर परेशां नहीं होना है,
जटिल मामले में आपसी सुलह कर लेना है…
ज़िंदगी हर चीज़ का हिसाब तो नहीं देती,
फिर अनसुलझी बातों पर सवाल क्यूॅं करना है!
जीने के लिए असली वक़्त जब गुज़र जाएगा
तो ज़िंदगी का रंग गॅंवाकर फिर क्या जीना है…
…. अजित कर्ण ✍️