दोस्ती
कभी-कभी ख़्याल आता है कि ज़िन्दगी इतनी छोटी कैसे हो सकती है ये इल्म कुछ वर्ष पहले ही हुआ जब किताबों से मित्रता हुई।हर तरफ बस किताबों के अंदर की ज़िन्दगी जो रोज़ शुरु होती है और फिर एक नयी ज़िन्दगी के साथ एक नया जन्म होता है और लगता है सब कुछ पा लिया है बस यही चाहिए था जीवन में۔۔
मनोज शर्मा