दोस्ती से हमसफ़र
गौरी मां बाबूजी के साथ जयपुर आई और गौरी के लिए अच्छा किराए का घर ढूंढा। बहुत प्रयत्न कर दोस्त की मदद से एक घर पसन्द आया।
मां और बाबूजी कमरे में गौरी का सामान सेट करवा कर वापिस गांव चले गये।
जयपुर में गौरी को बहुत असहज लग रहा था,मन में एक डर था वह यहां अकेली कैसे रह पाएगी। हालांकि मकानमालिक भी बहुत नरम स्वभाव की है पर अपने गांव और घर की याद उसे बरबस सता रही थी।रहना तो अब यही है नौकरी लगी है तो,,,,
धीरे-धीरे गौरी ने अपने आपको सहज किया।
मकान मालिक की बेटी से भी उसका शाम का समय निकल जाता। मकान मालकिन( (आंटी) भी उसे बहुत नेहशब्द बोलती थी, अधिकांश खाने पीने की वस्तु भी गौरी को भी भेजती थी,गौरी भी समय रहता जब कुछ नया बनाती तो आंटी के पास भी देती इस तरह उसे घर जैसा लगने लगा।
एक महीना निकल गया। उसे फिर भी अपने घर की बहुत याद आती।
गौरी रोज ई-रिक्शा से ओफिस जाती थी। कुछ दिन से वह देखती थी जिस रिक्शे में वह जाती उसी रिक्शे में दो लड़के भी रोज उसके साथ वही से बैठते जहां से वह बैठतीं,और उनकी निगाह उस पर रहती।
यह सब देख गौरी कुछ डर गई। एक दो दिन वह ओफिस भी नहीं गई…उसने बालकनी की छोटी सी झिररी से देखा वो लड़के भी वहीं खड़े थे,पर ई-रिक्शा में नहीं बैठे, सीधी सादी इससे गौरी बहुत डर गई।पर किसी से कहते नहीं बनता। ओफिस भी जाना जरूरी था।
यह सब सोच रही थी कि नीचे आंगन एक लड़का गले में तौलिया टांगें खड़ा था। उसने सुना कि आंटी (मकान मालकिन) को वह मां शब्द से सम्बोधित कर रहा था… लेकिन उसे तो पता ही नहीं था आंटी के एक बेटा भी है इतना तो पता था अंकल नहीं है। खैर मुझे क्या लेना…!!मैं तो यहां जॉब की वजह से यहां हूं… फिर तबादला हुआ और चली जाऊंगी।
शाम को आंटी ने उससे मिलवाया और बताया कि यह उनका बेटा आशुतोष है और इसका तबादला यही जयपुर में हो गया। है। अच्छा लगा था आशुतोष भी आंटी जैसा सरल स्वभाव का था।
अगले दिन इसी उहापोह में थी कि वह आज ओफिस कैसे जाएं..जाऊं या ना जाऊं…इतनी छुट्टी ..ना बाबा ना…पर डर भी था मन में। तैयार तो मैं हो गई पर..आज वही लड़के होंगे तो मैं,, कैसे जाऊं..कुछ ग़लत हुआ तो…यही बोलती हुई सीढ़ियों से नीचे आ रही थी की सीढ़ी चढ़ते हुए आशुतोष से टकरा गई….पर..गिरने से पहले आशुतोष ने गौरी को अपनी बाहों में थाम लिया। आशुतोष ने गौरी को डरी हुई और वह सब बोलते सुन लिया इसलिए बोला-‘ क्या ग़लत होगा…??कौन लड़के…??
नहीं..नहीं.. कुछ भी तो नहीं,,,, ज़वाब दे,जल्दी से गौरी बाहों से निकल आगे आ बाहर आ गई।
लेकिन आशुतोष को उस ज़वाब में डर के शब्द लगे वह चुपके से गौरी के पीछे चल दिया।
गौरी जैसे ही ई रिक्शे वाले को रोका,,,न जाने कहां से वहीं दो लड़के वहां आ खड़े हुए,,पर आज रिक्शे में सज्जन सी स्त्री भी बैठी थी और वे दोनो लड़के उसके वाले रिक्शे में नहीं थे।यह,,देखकर गौरी रिक्शे में बैठ तो गई,,,, पीछे देखता आशुतोष भी गौरी वाले ई-रिक्शे के पीछा करता अपनी बाइक चलाने लगा।
रास्ते में वह रिक्शा सड़क छोड़ नीचे पगडंडी की तरफ जाने लगा तो आशुतोष को संदेह हुआ उसने तुरंत अपने दोस्त राहुल और उसके भाई इंस्पेक्टर राकेश को उस जगह बुलाया।
एक छोटे से घर के सामने वह रिक्शा रूका तो देखा वहां वे दोनों लड़के पहले से ही खड़े थे। आशुतोष तुरंत बाइक तेजी से चलाता वहां आया तो देखकर भौंचक्का रह गया कि गौरी को उस युवती ने पकड़ा हुआ था गौरी को शायद सही से होश नहीं था,,वह तुरंत जाकर गौरी को छुड़ाने की कोशिश करने लगा,उन दोनों लड़के से भी सामना करने लगा,,, इतनी देर में इंस्पेक्टर और दोस्त आ ग ए और उन सबको सही वक्त पर आकर धर दबोचा।
आशुतोष ने गौरी को होश में लाने के लिए पानी की बोतल खरीद लाया,गौरी को सही से होश आया तो वह सब देख कर बहुत घबरा गई,रोती हुई आशुतोष के गले लग गई।कहने लगी आज तुम नहीं आते तो मेरा क्या होता…???
बड़ी मुश्किल से गौरी को जूस पिलाया और आशुतोष उसे घर ले आया।
इस घटना के बाद आशुतोष दोनों दोस्त बन गए,सुबह जल्दी उठकर कर आशुतोष ने गौरी को स्कूटी सिखाई।
अब गौरी बहुत बहादुर और हिम्मत वाली हो गई गांव वाली सीधी-सादी गौरी नहीं रही।
यह दोस्ती न जाने कब प्यार में बदल गई। दोनों को एक-दूसरे की परवाह भी होने लगी।
यह सब आशुतोष की मम्मी तो समझ गई,उनको तो गौरी पहले से ही अच्छी लगती थी, लेकिन बिरादरी समान नहीं थीसोचकर चुप हो जाती कि , मुझें तो इस रिश्ते से कोई एतराज़ नहीं है पर गौरी के माता-पिता इस रिश्तें को स्वीकार कर करेंगे या नहीं..!!पर ,,,बात तो करनी पड़ेगी यह सोच कर एक दिन आशुतोष की मम्मी ने सबके साथ गौरी के घर गांव घूमने का बहाना बनाया सबकी रजामंदी से गांव आएं,सबको बहुत अच्छा लगा,समय अनुकूल देखकर आशुतोष की मम्मी ने इस रिश्ते वाली बात की शुरुआत कर दी, लेकिन गौरी के पिता गौरी की शादी समाज में ही करने की इच्छा जताई और रिश्तें की अस्वीकृति दी।
गौरी कमरे में यह सब सुन कर मन ही मन रोने लगी,, आशुतोष की आंखें भी नम थी,उसने गौरी को भी देखा तो चुपचाप कमरे में आया और गौरी को समझाया -‘पगली,यह रिश्ता बड़ों आशिर्वाद से ही बंधता है,,पर नहीं बंधेगा…. ,,,पर हम दोस्त सदा रहेंगे।कहते गौरी के आंसू पोंछ कर बाहर आंगन में अपने आंसू पोंछने लगा।
गौरी, आशुतोष और आंटी को बहुत दुख हुआ । आंटी ने सरल भाव से उनको समझाने की कोशिश की।
गौरी के पिता आशुतोष को बहुत पसंद था सबकुछ अच्छा था लेकिन समाज का भय उन्हें इस रिश्तें को बनाने से रोक रहा।
इस बात को यहीं विराम देकर जैसे ही सब वापिस जाने लगे कि गौरी के पिता को हार्ड अटैक आ गया,और वे वहीं पर गिर पड़े,,यह देख आशुतोष ने फुर्ती से तुरंत उन्हें गाड़ी द्वारा पास के अस्पताल में ले गया,सही समय पर इलाज होने से उनको आराम मिलाऔर उन्हें जिद्द करके जयपुर बड़े अस्पताल में चेक अप कर पूरा ध्यान रखा जैसे अपना बेटा रखता है।
पूर्ण स्वस्थ होने पर गौरी के पिता ने गौरी और आशुतोष को बुलाया और दोनो का हाथ एक-दूसरे में थमा कर दोनों को सीने से लगा लिया।
और आशुतोष की मां से बोले-समधन जी पंडित जी को बुलाकर शादी का मुहुर्त निकलवाना है।
अब मुझे समाज की परवाह नहीं मेरे बच्चों की खुशी की परवाह है।
सबके चेहरे पर प्रसन्नता आ गई। आशुतोष और गौरी तो खूशी के आंसू को रोक नहीं पाएं।
दो अंजान लोग दोस्ती से हमसफ़र बनने जो जा रहे थे।
-सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान