दोस्ती पर वार्तालाप (मित्रता की परिभाषा)
तन्मय अपने मौसी के गाँव शादी में गया हुआ था, उसकी दोस्ती वहाँ पर अपने मौसी के जेठानी के बहन की लड़की संध्या और ननद की लड़की मनीषा से हो जाती हैं।
संध्या पहर में मंद – मंद हवाएं सुहाना सा मौसम, ऐसे वातावरण में संध्या और मनीषा छत पर पीछे वाले हिस्से तरफ जहाँ नीम पेड़ की टहनियाँ फैली हुई हैं, छत पर नीम के छाँव में बैठ कर वार्तालाप कर रहीं होती हैं, तभी अचानक से तन्मय वहाँ आ जाता हैं, तन्मय कहता हैं, अरे यार मैं तुम दोनों को नीचे खोज रहा था, तुम तो यहाँ पर बैठी हो, तुम भी आकर बैठ जाओ कौन मना किया हैं संध्या कहती हैं, आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा हैं, थक गया हूँ, तभी संध्या कहती हैं आओ तुम्हारा सिर दबा देती हूँ, मेरे गोंद में सिर रखों, अच्छे से मालिश कर दूंगी फिर तुम्हारा सिर दर्द कभी नहीं करेगा, रहने दो मैं नीचे जाकर दावा ले लूंगा, तुम तो लड़कियों की तरह शर्म कर रहे हो आओ, आग्रह करने पर तन्मय लेट जाता हैं, सांध्य उसका सिर दबाने लगती हैं, तीनों में बातों ही बातों में “मित्रता” विषय पर संवाद होने लगता हैं।
मनीषा:- संध्या यह बताओ तुम अपने जीवन में दोस्ती को किस नजरिया से देखती हो, दोस्ती तुम्हारे जीवन में क्या महत्त्व रखती हैं।
संध्या:- मनीषा मैं आपको मित्रता के बारे में क्या परिभाषा दे सकती हूँ, इसका मुझे कुछ अनुभव नहीं हैं, फिर भी जो कुछ सुना हूँ, वह आप को बताती हूँ, मित्रता वह बंधन हैं, जो किसी जाति – पाती से बंधी नहीं होती हैं, जिसमें व्यक्ति एक दूसरे के साथ स्नेह प्रेम सुख – दुःख, आदि का आदान – प्रदान कर सके वहीं घनिष्ठ मित्रता को परिपक्वता एवम् सुदृढ़ बना देती हैं, क्या मैं सही कह रहीं हूँ।
मनीषा:- अति उत्तम शब्दों और भावों को तुमने प्रकट किया हैं, तन्मय तुम भी कुछ अपने विचार रखों।
तन्मय:- मित्रता संसारिकता का वह संबंध हैं, जिसे निभाना अति कठिन हैं, आप परिवार के साथ रहकर चाहने पर भी अपने मित्र की सहायता नहीं कर सकते हो।
मित्र जब संकट में हो तो अपना सब कुछ लगा कर उसको संकट से मुक्त करों, यहीं मित्र धर्म कहा जाता हैं, इसके कई उदाहरण पौराणिक एवम् ऐतिहासिक ग्रंथो में हमें प्राप्त हैं, कर्ण – दुर्योधन, कृष्ण – सुदामा, कृष्ण – अर्जुन, राम – सुग्रीव, राम – विभीषण, राम – निषाद, इत्यादि प्रमाणिक प्रमाण हैं।
संध्या:- सही कहाँ तुमने, मनीषा अब तुम बताओ अपने विचार से दोस्ती क्या हैं।
मनीषा:- दोस्ती आत्मा से परमात्मा से मिलन की वह परोक्ष प्रमाण हैं, जिसे व्यक्ति विशेष को अपने अनुभावों द्वारा अंत: स्थल हृदय में महसूस किया जाता हैं, जिस प्रकार परमात्मा में सब विलीन हैं, उसी प्रकार मित्रता वह आत्मा हैं, जो जीवन में एक दूसरे से जुड़कर घनिष्ठ संबंध बनाकर अपने कर्त्तव्य का पालन करने वाला शक्ति साध्य पूजन में मित्रता आत्मा से परमात्मा के मिलन का वरदान हैं।
संध्या:- प्रेम जीवन में मित्रता का क्या संबंध स्थापित करता हैं।
तन्मय:- अपने स्थाईत्व जीवन के आधार पर अपने विचार व्यक्त करता हूँ, मित्रता और प्रेम का जीवन में घनिष्ठ संबंध हैं, इसे नकारा नहीं जा सकता हैं, जब नायक और नायिका के प्रेम जीवन में मित्रता निभा पाना कठिन हैं, जब उन्हें वियोग समरांगण समर में आना हो, मित्रता मिलन ही नहीं हैं, यह वह बंधन हैं जिसमें विक्षोह के साथ भी संबंध अटूट बना रहे, मित्रता समर्पण का वह प्रतिबिंब हैं, जिसे नकारा नहीं जा सकता हैं, लेकिन नायक – नायिका के वियोग पर मित्रता तो स्थापित हो सकता हैं, लेकिन रिश्तो संबंधों मर्यादा, समाज में एक नायक – नायिका के मित्रता भरे संबंध को यह समाज कभी भी स्वीकार नहीं कर पाएगा, अनुचित कटाक्षों का बाण सदैव ऐसे संबंधों को सहना ही पड़ता हैं, जिसमें यह एक दूसरे का सहयोग करने के इच्छुक भी हो तो नहीं कर पाते हैं।
संध्या:- बात तो तुम्हारी सही लग रही हैं, तुम्हारे साथ ऐसी घटना घटी हैं क्या जो ऐसा परिपक्वता भरे संवेदनशील विवरण बता रहे हो।
तन्मय:- नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं हैं, यह तो मित्रों द्वारा वार्तालाप का एक हिस्सा हैं, जिसे मैं अपने अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ।
संध्या:- समाज लड़कों और लड़कियों के मित्रता भरे संबंध कहाँ तक स्वीकार कर पाया हैं।
मनीषा:- समाज एक ऐसी लाठी हैं, जिसे व्यक्ति को पकड़ कर चलना ही पड़ता हैं व्यक्ति अगर उसे पकड़ कर ना चले तो समाज में उसका महत्त्व शून्य हैं।
लड़के और लड़कियों के मित्रता भरे संबंध समाज में एक आकर्षण केंद्र में पदुर्भाव का अनुमोदन हैं, जब किसी लड़के और लड़की में घनिष्ठ मित्रता होती हैं तो उसे दोनों निभाना चाहते हैं लेकिन परिवार रिश्तो समाज से बंधी जंजीर को चाह कर भी वह नहीं तोड़ सकती हैं, अगर वह इस जंजीर को तोड़कर अपने मित्र का सहयोग भी करना चाहे तो नहीं कर पाएंगी, ऐसा करती हैं तो उसके चरित्र पर सवालों के पुल बांध दिए जाते हैं, ऐसे में यह संबंध स्कूल और कॉलेज तक ही सीमित रह जाते हैं।
तन्मय:- अति उत्तम व्याख्यान दिया आपने, संध्या यह बताओ रिश्तो में किसी लड़का और लड़की की दोस्ती का निर्वाह कहाँ तक संभव हैं।
संध्या:- दोस्ती सभी बंधनों से परे हैं यह रिश्ते नातों का मोहताज नहीं हैं लेकिन रिश्तो में लड़के और लड़कियों के दोस्ती संबंध तभी तक निभाया जा सकता हैं, जब तक वह विवाहित नहीं हैं, परिणय सूत्र में बंधने के उपरांत तो उसे अपने ससुराल से लेकर नैहर तक सब के मान सम्मान मर्यादा का ख्याल करना पड़ता हैं।
तन्मय:- संध्या तुम अपने जीवन में किसी से मित्रता की हो उसका अनुभव कहो।
संध्या:- लड़कियों से लड़कियों की मित्रता केवल खेलकूद तक ही रहता हैं जब तक विवाह नहीं होता तब तक ही मित्रता निभा सकते हैं।
मनीषा:- पश्चिमी सभ्यता ने भारतीयों में बहुत कुछ बदलाव कर दिया हैं, अब तो लड़कियाँ भी समाज में निकल कर लड़कों से कँधा मिलाकर चल रही हैं और अपने कर्त्तव्यों के साथ अपनी मित्रता का संबंध भी निभा रही हैं इसे नकारा नहीं जा सकता हैं।
संध्या:- पश्चिमी सभ्यता ने आज हमारे रीति – रिवाज संबंधों में इतनी मिलावट कर दिया हैं जहाँ प्रेम प्रवाह, स्नेह मिठास कम हो गया हैं।
मनीषा:- दोस्ती का आज के समाज पर क्या प्रभाव हैं।
तन्मय:- आज सामाजिक वातावरण में दोस्ती एक दिखावा छलावा हैं अपने स्वार्थ हेतु एक दूसरे से मिले हुए हैं, जहाँ स्वार्थ हैं वहाँ दोस्ती का संबंध एक छलावा ही हैं, व्यक्ति दिखावा में अपने हेतु मकान, कार ऐसो आरामदायक वस्तुओं के उपभोग हेतु एक दूसरे को नीचा दिखाने हेतु अपने मित्रों से धन तो लेता हैं तो उसे समय पर दे नहीं पाता हैं और सामने वाला मित्र उसे वही धन ब्याज पर देता हैं जहाँ समाज में मित्रता व्यवसाय, व्यापार हो जाए वह छलावा, दिखावा नहीं तो और क्या हैं, जो ऐसा करते हैं, वह अपने को गरीब सुदामा और श्रीकृष्ण के दोस्ती का उदाहरण बताने में भी शर्म नहीं करते हैं, समाज में आज गरीब और अमीर व्यक्ति की मित्रता संभव नहीं हैं, ऐसा होता तो पी.एम. का मित्र एक कचरा बटोरने वाला भी होता, जब चाय बेचने वाला पी.एम. हो सकता हैं, तो कचरा बटोरने वाला तो उनका मित्र जरूर हो सकता हैं इसमें संदेह नहीं किया जा सकता हैं, लेकिन अभी वह समाज में दिखाया नहीं गया हैं, आज समाज में स्वार्थ संबंध पर मित्रता का बंधन बंधा हुआ हैं।
मनीषा:- संध्या बताओ तुम अपने जीवन में कैसे मित्र को स्वीकार करना चाहोगी।
संध्या:- आज समाज में स्वार्थ पर तो सभी रिश्ते टिके हुए हैं तो मित्रता की बात क्या करें वैसे जो निश्छल, सप्रेमी, कर्त्तव्य निष्ठ, धैर्यवान मधुभाषी व्यक्ति हो, ऐसे व्यक्ति से मित्रता करना आज के समाज में घनिष्ठ संबंध का परितोषक होगा।
तन्मय:- स्व: मित्रता पर आप दोनों का क्या ख्याल हैं।
मनीषा:- मैं इस बारे में कभी सोचा ही नहीं इसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती हूँ।
संध्या:- मनीषा ने इससे पहले ही स्पष्ट कर दिया हैं कि आत्मा से परमात्मा के मिलन में जो अंतर हैं वहीं स्व: मित्रा का उपहार हैं, अब तुम बताओ स्व: मित्रता क्या हैं।
तन्मय:- स्व: मित्रता वह आत्म शक्ति हैं जो व्यक्ति को सभी क्लिष्ट परिस्थितियों से बाहर निकलने का एक ब्रह्म सूचक अचूक मंत्र हैं, जो व्यक्ति में आत्म सार यज्ञ में समिधा आहुति का प्रसाद हैं, जो स्व: अध्याय का आरंभ से अंत परिपथ का परिग्रहण प्रमाण हैं।
तन्मय:- संध्या मुझे भूख लगा हैं अब चलते हैं, बस यह एक अंतिम प्रश्न हैं, मित्रता का सबसे सुंदर संबंध कौन सा हैं।
संध्या:- मित्रता का सबसे सुंदर घनिष्ठ संबंध पति और पत्नी का होता हैं, यह ऐसा संबंध हैं जिसमें एक दूसरे के सभी सुख – दु:ख में परस्पर भागीदार होते हैं, पत्नी एक वह सहभागिनी हैं, जो अपने स्वामी को सभी संबंधों में परस्पर सहयोग देती हैं, जब वह प्रातः समय चाय लेकर अपने पति को जगाने जाती हैं, तो उसमें मातृत्व प्रेम झलकता हैं, दोपहर में भोजन उपरांत एक बहन का संबंध झलकता हैं, समस्याओं में उसके साथ खड़ी होने पर अपने पत्नी धर्म का पालन करती हैं, पति भी त्याग में किसी से कम नहीं हैं, वह भी त्याग से अपने परिश्रम से अपने जीवन में ईमानदारी से अपने सम्बन्ध निर्वाह करता हैं।
धन्यवाद।
इंजी.नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)