दोस्ती का असर
आज भी जब कभी फूर्सत में अपनी जिंदगी के बीते पलो को ताजा करता हुँ तो, मेरे हदय की जमीं पर मेरी वह दोस्त अपना हस्ताक्षर जरुर करती है, जिससे विदा लेते समय मैने उससे कहा था की ”आज के बाद तुझे कभी भी दिल से याद नही करुंगा”
अपने कहे वाक्यो पर सदैव खरा उतरने वाला मैं, कैसे उस दोस्त कि मित्रता के दर पर खुद को झुका सकता हूँ। क्यूं उस की मित्रता के आगे मेरे वचन की किमत गौण हो गई। क्या जिंदगी फिर से उन फड़फडाते पन्नो को मुझसे पढ़वाना चाहती है, जो अतीत के दामन में दबे पड़े हुऐ है।
इतने वर्षो तक जिसको याद करना जहन में नही था, उसी को ही मन क्यूं फिर से यादो मे वजूद में ला रहा है। इसे जिंदगी कि किताब का गुजर रहा एक लम्हा कहूँ, या उसकी दोस्ती का असर। जो आज पांच सालो बाद भी मुझे उसी का ही ”बेस्ट फ्रैंड़” बता रहा है। वक्त के आगोश में उन पलो के पन्नो पर जमी पड़ी विस्मृति की धूल, जो अब शायद यादो से हटती जा रही है।
इसी के साथ ही याद आती है, वह निश्छलता भरी मुस्कान जो उसके गालो पर डिंपल गड़ देती थी। जिसकी गंर एक झलक को देख ले तो सब कुछ भूल उसी का कायल बना दे। उसका मुख सौंदर्य किसी शरद पूनम की रात से कम न था। चांद सा धवल मुख, काले रेश्मी कछ, तीखी मृग नयनी, गुलाब कि पंखुड़ीयो से अधर और सोने पर सुहागा मुख मंड़ल के नीचे एक काला तिल, जो उसकी सुंदरता को चार चांद लगा रहा था। उसका नख-चख का सौंदर्य सहरानीय व अवर्णित था।
उसका रुप-सौंदर्य जितना सुंदर था, उस से भी कही ज्यादा मन अपना प्रभाव बिखेर रहा था। उसकी बातो का रसासवादन मुझको उसकी दोस्ती का कायल बना रहा था। उसकी मुस्कुराहठ तो मानो मेरे हदय पटल पर अमीट स्याही से अंकित हो गई हो। जब कभी भी उसका मुस्कुराता व चांद की शीतलता बिखेरती हँसी को देखता तो, मन मानो बगीयो में भंवरो की भांती गुंजार करता।
उस दोस्त कि हर एक अदा इस नाचीज को अत्यधिक भाने लगी। उसकी मित्रता का साथ और मेरे पर पूर्ण विश्वास, यही है जो आज इतने वक्त मय्यसर के बाद भी उसकी कृति को मिटा न सका। ये उसके संग बीते मित्रता के पल ही है, जो आज भी मुझे उसके दोस्त होने का अहसास करवा रही है। उसकी और मेरी दोस्ती सबसे उच्च व विशेष कोटी के दर्जे की है, जो सदैव नदी के दो किनारो की भांती एक साथ चलती रहेगी। पृथ्वी के क्षितिज बिंदू कि भांती यह दोस्ती भी अजर व अमर है।
लवनेश चौहान
बनेड़ा (राजपुर)