दोगले मित्र
दोगलों के जैसे पवित्र हो,
हमसे कहते हो, हमारे मित्र हो ॥
दिखाने को रखते हो कोमल हृदय,
वैसे तो त्रिया चरित्र हो ।
बिन बोले पाल्हा बदल लिए,
लगता है नेताओं के मित्र हो ॥
फंसा हूँ मरूंगा पर नहीं दोस्त,
मैं बचूँ या फँसू तुम सचरित्र हो ।
तुम फफूंदियाँ कितने ही लगाओ मेरे ऊपर,
मैं तो हर बार कहूँगा तुम इत्र हो, तुम इत्र हो..!
©®अमरेश मिश्र