*देश के नेता खूठ बोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ*
देश के नेता खूठ बोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ
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देश के नेता झूठ बोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ,
वोट की कीमत नोट तोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ।
सत्य अहिंसा से क्या लेना देना मोटा पेट भरता जाए,
एक दूजे के राज खोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ।
हो न पाये जनता एकजुट एकता को तोड़ते रहते हैँ,
जाति धर्म का जहर घोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ।
आँख दिखा कर टाँग खींचते आगे ना कोई बढ़ पाये,
देख कुरसी को नीत डोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ।
रंक मरता – रहता जूझता दो टूक निवाले को हर दम,
हाथ खोलकर पूँजी जोड़ते फिर क्यों अपने लगते है।
खुद का उल्लू सीधा हो भाड़ में जाये आलम रंजन,
अग्रिम बढ़ती राह रोकते फिर क्यों अपने लगते हैँ।
मोह माया के जाल में फंस कर डूबें रहते हैँ मनसीरत,
राज के दम पर मौज लूटते फिर क्यों अपने लगते हैँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)