देश के दुश्मन कहीं भी, साफ़ खुलते ही नहीं हैं
देश के दुश्मन कहीं भी, साफ़ खुलते ही नहीं हैं
भीड़ में शामिल हैं, पर अफ़सोस, दिखते ही नहीं हैं
बाज़ मौकों पे हमेशा ही, ज़हर घोलें फ़िज़ाओं में
हैं बड़े मासूम वो, क़ातिल भी, लगते ही नहीं हैं
– महावीर उत्तरांचली