देश की चाह ( चँद्र छंद)
देश की चाह
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चँद्र छंद 17 मात्राएँ
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देश तुमको पुकारे बढ़ो रे ।
आपसी में कहीं मत लड़ो रे ।
राजनीती सदा बरगलाये ।
जाल कोमल फसाने बिछाये ।
चालबाजी चलें रोज नेता ।
आदमी के बने खास क्रेता ।
आँधियों में टिको डाल पर ही,
पीत पत्ते बने मत झड़ो रे ।
देश कहता कि आगे बढो रे ।
फिर चली है हवा वोट वाली ।
भाषणों की शुरू है जुगाली।
खोट वाले दिखें आज चोखे ।
दे चुके हों भले खूब धोखे ।
कौन के पाठ में क्या लिखा है,
ठीक समझो समझ के पढो रे।
देश तुमको पुकारे बढ़ो रे।
क्या बतायें खुलासा गुरू जी।
क्या दिलायें दिलासा गुरू जी।
चोट पर चोट खाये हुए हैं।
और उनको निभाये हुए हैं।
चाहिये आसरा आखिरी में,
कुंभ अपने स्वयं के गढो रे।
देश तुमको पुकारे बढ़ो रे।
भारती की,यही कामना है।
ये चुनौती भरा सामना है ।
रेत में स्वर्ण के खास दाने ।
ढूंढना है वतन को बचाने।
जान जाये कहाँ क्या पता है
सीढियाँ को सँभल के चढ़ो रे।
देश कहता कि आगे बढो रे।
आपसी में कभी मत लड़ो रे ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
5/6/23